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Sunday 24 November 2013

"चम्पू काव्य-खो गयी प्राचीनता?" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

कौन थे? क्या थे? कहाँ हम जा रहे?
व्योम में घश्याम क्यों छाया हुआ?
भूल कर तम में पुरातन डगर को,
कण्टकों में फँस गये असहाय हो,
वास करते थे कभी यहाँ पर करोड़ो देवता,
देवताओं के नगर का नाम आर्यावर्त था,
काल बदला, देव से मानव कहाये,
ठीक था, कुछ भी नही अवसाद था,
किन्तु अब मानव से दानव बन गये,
खो गयी जाने कहाँ? प्राचीनता,
मूल्य मानव के सभी तो मिट गये,
शारदा में पंक है आया हुआ,
हे प्रभो! इस आदमी को देख लो,
लिप्त है इसमे बहुत शैतानियत,
आज परिवर्तन हुआ कैसा घना,
हो गयी है लुप्त सब इन्सानियत।

Wednesday 20 November 2013

"ढाई आखर नही व्याकरण चाहिए" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')


मोक्ष के लक्ष को मापने के लिए,
जाने कितने जनम और मरण चाहिए ।
प्यार का राग आलापने के लिए,
शुद्ध स्वर, ताल, लय, उपकरण चाहिए।।

लैला-मजनूँ को गुजरे जमाना हुआ,
किस्सा-ए हीर-रांझा पुराना हुआ,
प्रीत की पोथियाँ बाँचने के लिए-
ढाई आखर नही व्याकरण चाहिए ।
प्यार का राग आलापने के लिए,
शुद्ध स्वर, ताल, लय, उपकरण चाहिए।।

सन्त का पन्थ होता नही है सरल,
पान करती सदा मीराबाई गरल,
कृष्ण और राम को जानने के लिए-
सूर-तुलसी सा ही आचरण चाहिए ।
प्यार का राग आलापने के लिए,
शुद्ध स्वर, ताल, लय, उपकरण चाहिए।।

सच्चा प्रेमी वही जिसको लागी लगन,
अपनी परवाज में हो गया जो मगन,
कण्टकाकीर्ण पथ नापने के लिए-
शूल पर चलने वाले चरण चाहिए।।
प्यार का राग आलापने के लिए,
शुद्ध स्वर, ताल, लय, उपकरण चाहिए।।

झर गये पात हों जिनके मधुमास में,
लुटगये हो वसन जिनके विश्वास में,
स्वप्न आशा भरे देखने के लिए-
नयन में नींद का आवरण चाहिए ।।
प्यार का राग आलापने के लिए,
शुद्ध स्वर, ताल, लय, उपकरण चाहिए।।