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Wednesday 25 June 2014

‘‘जो घमण्डी हैं उनका ही होता पतन’’ (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)

जो हैं कोमल-सरल उनको मेरा नमन।
जो घमण्डी हैं उनका ही होता पतन।।

पेड़ अभिमान में थे अकड़ कर खड़े
एक झोंके में वो धम्म से गिर पड़े
लोच वालों का होता नही है दमन।
जो घमण्डी हैं उनका ही होता पतन।।

सख्त चट्टान पल में दरकने लगी

जल की धारा के संग में लुढ़कने लगी
छोड़ देना पड़ा कंकड़ों को वतन।
जो घमण्डी हैं उनका ही होता पतन।।


घास कोमल है लहरा रही शान से

सबको देती सलामी बड़े मान से
आँधी तूफान में भी सलामत है तन।
जो घमण्डी हैं उनका ही होता पतन।।

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