इन्साफ की डगर पर, नेता नही चलेंगे।
होगा जहाँ मुनाफा, उस ओर जा मिलेंगे।।
दिल में घुसा हुआ है,
दल-दल दलों का जमघट।
संसद में फिल्म जैसा,
होता है खूब झंझट।
फिर रात-रात भर में, आपस में गुल खिलेंगे।
होगा जहाँ मुनाफा उस ओर जा मिलेंगे।।
गुस्सा व प्यार इनका,
केवल दिखावटी है।
और देश-प्रेम इनका,
बिल्कुल बनावटी है।
बदमाश, माफिया सब इनके ही घर पलेंगे।
होगा जहाँ मुनाफा, उस ओर जा मिलेंगे।।
खादी की केंचुली में,
रिश्वत भरा हुआ मन।
देंगे वहीं मदद ये,
होगा जहाँ कमीशन।
दिन-रात कोठियों में, घी के दिये जलेंगे।
होगा जहाँ मुनाफा, उस ओर जा मिलेंगे।।
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Wednesday 23 April 2014
"इन्साफ की डगर पर" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
Friday 18 April 2014
"ईश्वर-अल्लाह कैद हो गया आलीशान मकानों में" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
चैन-ओ-अमन, सुकून खोजता, मजहब की दूकानों में।
चौकीदारों ने मालिक को, बन्धक आज बनाया है,
मिथ्या आडम्बर से, भोली जनता को भरमाया है,
धन के लिए समागम होते, सभागार-मैदानों में।
पहले लूटा था गोरों ने, अब काले भी लूट रहे,
धर्मभीरु भक्तों को, भगवाधारी जमकर लूट रहे,
क्षमा-सरलता नहीं रही, इन इन्सानी भगवानों में।
झोली भरते हैं विदेश की, हम सस्ते के चक्कर में,
टिकती नहीं विदेशी चीजें, गुणवत्ता की टक्कर में,
नैतिकता नीलाम हो रही, परदेशी सामानों में।
जितनी ऊँची दूकानें, उनमें फीके पकवान सजे,
कंकड़-पत्थर भरे कुम्भ से, कैसे सुन्दर साज बजे,
खोज रहे हैं लोग जायका, स्वादहीन पकवानों में।
गंगा सूखी, यमुना सूखी, सरस सुमन भी सूख चले,
ज्ञानभास्कर लुप्त हो गया, तम का वातावरण पले,
ईश्वर-अल्लाह कैद हो गया, आलीशान मकानों में।।
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