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Friday 24 April 2015

"गीत सुनाती माटी" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

गीत सुनाती माटी अपनेगौरव और गुमान की।
दशा सुधारो अब तो लोगोंअपने हिन्दुस्तान की।।

खेतों में उगता है सोनाइधर-उधर क्यों झाँक रहे?
भिक्षुक बनकर हाथ पसारेअम्बर को क्यों ताँक रहे?
आज जरूरत धरती माँ कोबेटों के श्रमदान की।
दशा सुधारो अब तो लोगोंअपने हिन्दुस्तान की।।

हरियाली के चन्दन वन मेंकंकरीट के जंगल क्यों?
मानवता के मैदानों मेंदावनता के दंगल क्यों
कहाँ खो गयी साड़ी-धोतीभारत के परिधान की।
दशा सुधारो अब तो लोगोंअपने हिन्दुस्तान की।।

टोपी-पगड़ीचोटी-बिन्दीहमने अब बिसराई क्यों
अपने घर में अपनी हिन्दीसहमी सी सकुचाई क्यों?
कहाँ गयी पहचान हमारेपुरखों के अभिमान की।
दशा सुधारो अब तो लोगोंअपने हिन्दुस्तान की।।

कहाँ गया ईमान हमारा, कहाँ गया भाई-चारा?
कट्टरपन्थी में होता, क्यों मानवता का बँटवारा?
मूरत लुप्त हो गयी अब तो, अपने विमल-वितान की।।
दशा सुधारो अब तो लोगोंअपने हिन्दुस्तान की।।