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Sunday 22 November 2015

"हार नहीं मानूँगा" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')


जब तक तन में प्राण रहेगा, हार नहीं माँनूगा।
कर्तव्यों के बदले में, अधिकार नहीं माँगूगा।।
टिक-टिक करती घड़ी, सूर्य-चन्दा चलते रहते हैं,
अपने मन की कथा-व्यथा को, कभी नहीं कहते हैं,
बिना वजह मैं कभी किसी से, रार नहीं ठाँनूगा।
 कर्तव्यों के बदले में, अधिकार नहीं माँगूगा।।
जीवन के भवसागर से, नौका को पार लगाना है,
श्रम करके जीविका कमाना, सीधा पथ अपनाना है,
भोले-भाले, असहायों पर, शस्त्र नहीं ताँनूगा।
कर्तव्यों के बदले में, अधिकार नहीं माँगूगा।।
जन्मभूमि के लिए जियूँगा, इसके लिए मरूँगा,
आन-बान के लिए देश की, अर्पण प्राण करूँगा,
 मर्यादा की सीमा को, मैं कभी नहीं लाँघूगा।
कर्तव्यों के बदले में, अधिकार नहीं माँगूगा।।