सूरज आग उगलता जाता।
नभ में घन का पता न पाता।१।
जन-जीवन है अकुलाया सा,
कोमल पौधा मुर्झाया सा,
सूखा सम्बन्धों का नाता।
नभ में घन का पता न पाता।२।
सूख रहे हैं बाँध सरोवर,
धूप निगलती आज धरोहर,
रूठ गया है आज विधाता।
नभ में घन का पता न पाता।३।
दादुर जल बिन बहुत उदासा,
चिल्लाता है चातक प्यासा,
थक कर चूर हुआ उद्गाता।
नभ में घन का पता न पाता।४।
बहता तन से बहुत पसीना,
जिसने सारा सुख है छीना,
गर्मी से तन-मन अकुलाता।
नभ में घन का पता न पाता।५।
खेतों में पड़ गयी दरारें,
कब आयेंगी नेह फुहारें,
“रूप” न ऐसा हमको भाता।
नभ में घन का पता न पाता।६।
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Monday, 29 August 2016
गीत "सूरज आग उगलता जाता" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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Sundar kavita.
ReplyDeleteShayad ye bhi aapko pasand aayen- Albert Einstein Quotes , Love Quotes for Him
अच्छी रचना
ReplyDeleteशुभकामनाओं के साथ सदर नमन
बहुत सुन्दर रचना |
ReplyDeleteHindi Story
ReplyDeletemeri baate
Bhoot Ki kahani
Akabar Birbal
MPPSC
Jude hmare sath apni kavita ko online profile bnake logo ke beech share kre
ReplyDeletePub Dials aur agr aap book publish krana chahte hai aaj hi hmare publishing consultant se baat krein Online Book Publishers