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Wednesday, 29 October 2014

"जो घमण्डी हैं उनका ही होता पतन’’ (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)

जो हैं कोमल-सरल उनको मेरा नमन।
जो घमण्डी हैं उनका ही होता पतन।।

पेड़ अभिमान में थे अकड़ कर खड़े
एक झोंके में वो धम्म से गिर पड़े
लोच वालो का होता नही है दमन।
जो घमण्डी हैं उनका ही होता पतन।।

सख्त चट्टान पल में दरकने लगी
जल की धारा के संग में लुढ़कने लगी
छोड़ देना पड़ा कंकड़ों को वतन।
जो घमण्डी हैं उनका ही होता पतन।।

घास कोमल है लहरा रही शान से
सबको देती सलामी बड़े मान से
आँधी तूफान में भी सलामत है तन।
जो घमण्डी हैं उनका ही होता पतन।।

Tuesday, 30 September 2014

"गीत-हमको याद दिलाते हैं” (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

जब भी सुखद-सलोने सपने,  नयनों में छा आते हैं।
गाँवों के निश्छल जीवन कीहमको याद दिलाते हैं।

सूरज उगने से पहलेहम लोग रोज उठ जाते थे,
दिनचर्या पूरी करके हमखेत जोतने जाते थे,
हरे चने और मूँगफली केहोले मन भरमाते हैं।
गाँवों के निश्छल जीवन कीहमको याद दिलाते हैं।।

मट्ठा-गुड़ नौ बजते हीदादी खेतों में लाती थी,
लाड़-प्यार के साथ हमेंवह प्रातराश करवाती थी,
मक्की की रोटीसरसों का साग याद आते हैं।
गाँवों के निश्छल जीवन कीहमको याद दिलाते हैं।।

आँगन में था पेड़ नीम काशीतल छाया देता था,
हाँडी में का कढ़ा-दूध, ताकत तन में भर देता था,
खो-खो और कबड्डी-कुश्ती, अब तक मन भरमाते हैं।
गाँवों के निश्छल जीवन कीहमको याद दिलाते हैं।।

तख्ती-बुधका और कलमबस्ते काँधे पे सजते थे,
मन्दिर में ढोलक-बाजाखड़ताल-मँजीरे बजते थे,
हरे सिंघाड़ों का अब तकहम स्वाद भूल नही पाते हैं।
गाँवों के निश्छल जीवन कीहमको याद दिलाते हैं।।

युग बदलापहनावा बदलाबदल गये सब चाल-चलन,
बोली बदलीभाषा बदलीबदल गये अब घर आंगन,
दिन चढ़ने पर नींद खुलीजल्दी दफ्तर को जाते हैं।
गाँवों के निश्छल जीवन कीहमको याद दिलाते हैं।।

Saturday, 20 September 2014

"गजल और गीत" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')


गजल और गीत क्या है,
नहीं कोई जान पाया है।
हृदय की बात कहने को,
कलम अपना चलाया है।।

मिलन की जब घड़ी होती,
बिछुड़ जाने का गम होता,
 तभी पर्वत के सीने से,
निकलता  धार बन सोता,
उफनते भाव के नद को,
करीने से सजाया है।
हृदय की बात कहने को,
कलम अपना चलाया है।।

बिछाएँ हों किसी ने जब,
वफा की राह में काँटे,
लगीं हो दोस्ती में जब,
जफाओं की कठिन गाँठे,
दबे जज्बात कहने का,
बहाना हाथ आया है।
हृदय की बात कहने को,
कलम अपना चलाया है।।

चमन में जब कभी,
वीरानगी-दहशत सी छायी हो,
वतन में जब कभी,
गर्दिश कहर बन करके आयी हो,
बहारों को मनाने को,
सुखनवर गीत लाया है।
हृदय की बात कहने को,
कलम अपना चलाया है।।

Saturday, 26 July 2014

“सावन की ग़जल” (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री “मयंक”)

savan ke jhoole
गन्दुमी सी पर्त ने ढक ही दिया आकाश नीला 
देखकर घनश्याम को होने लगा आकाश पीला 

छिप गया चन्दा गगन में, हो गया मज़बूर सूरज
 

पर्वतों की गोद में से बह गया कमजोर टीला 

बाँटती सुख सभी को बरसात की भीनी फुहारें
 

बरसता सावन सुहाना हो गया चौमास गीला 
 
 पड़ गये झूले पुराने नीम के उस पेड़ पर
पास के तालाब से मेढक सुनाते सुर-सुरीला 

इन्द्र ने अपने धनुष का 
“रूप” सुन्दर सा दिखाया 

सात रंगों से सजा है गगन में कितना सजीला
indradhanush

Friday, 11 July 2014

"गीत-अपना साया भी, बेगाना लगता है" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

वक्त सही हो तो सारासंसार सुहाना लगता है।
बुरे वक्त में अपना साया भीबेगाना लगता है।।

यदि अपने घर व्यंजन हैंतो बाहर घी की थाली है,
भिक्षा भी मिलनी मुश्किलयदि अपनी झोली खाली है,
गूढ़ वचन भी निर्धन काजग को बचकाना लगता है।
बुरे वक्त में अपना साया भीबेगाना लगता है।।

फूटी किस्मत हो तोगम की भीड़ नजर आती है,
कालीनों को बोरों कीकब पीड़ नजर आती है,
कलियों को खिलते फूलों का रूप पुराना लगता है।
बुरे वक्त में अपना साया भीबेगाना लगता है।।

धूप-छाँव जैसाअच्छा और बुरा हाल आता है,
बारह मास गुजर जाने परनया साल आता है,
खुशियाँ घर में आयें तो, अच्छा मुस्काना लगता है।
बुरे वक्त में अपना साया भीबेगाना लगता है।।

Tuesday, 1 July 2014

“बरसता सावन सुहाना हो गया” (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

savan ke jhoole
गन्दुमी सी पर्त ने ढक ही दिया आकाश नीला 
देखकर घनश्याम को होने लगा आकाश पीला 

छिप गया चन्दा गगन में, हो गया मज़बूर सूरज
 

पर्वतों की गोद में से बह गया कमजोर टीला 

बाँटती सुख सभी को बरसात की भीनी फुहारें
 

बरसता सावन सुहाना हो गया चौमास गीला 

 पड़ गये झूले पुराने नीम के उस पेड़ पर
पास के तालाब से मेढक सुनाते सुर-सुरीला 

इन्द्र ने अपने धनुष का 
“रूप” सुन्दर सा दिखाया 

सात रंगों से सजा है गगन में कितना सजीला

Wednesday, 25 June 2014

‘‘जो घमण्डी हैं उनका ही होता पतन’’ (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)

जो हैं कोमल-सरल उनको मेरा नमन।
जो घमण्डी हैं उनका ही होता पतन।।

पेड़ अभिमान में थे अकड़ कर खड़े
एक झोंके में वो धम्म से गिर पड़े
लोच वालों का होता नही है दमन।
जो घमण्डी हैं उनका ही होता पतन।।

सख्त चट्टान पल में दरकने लगी

जल की धारा के संग में लुढ़कने लगी
छोड़ देना पड़ा कंकड़ों को वतन।
जो घमण्डी हैं उनका ही होता पतन।।


घास कोमल है लहरा रही शान से

सबको देती सलामी बड़े मान से
आँधी तूफान में भी सलामत है तन।
जो घमण्डी हैं उनका ही होता पतन।।