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Tuesday 14 June 2022

गीत "दूर गर्मी को भगायें" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)

रूप कितने-रंग कितने।
बादलों के ढंग कितने।।
 
कहीं चाँदी सी चमक है,
कहीं पर श्यामल बने हैं।
कहीं पर छितराये से हैं,
कहीं पर झुरमुट घने हैं।
मोहते ये मन सभी का,
कर रहे हैं दंग कितने।
बादलों के ढंग कितने।।
 
सींचने आये धरा को,
अमल-शीतल नीर लेकर।
हल चलेंगे खेत में अब,
धान की तकदीर लेकर।
लग रहे थे पेड़-पौधे,
जल बिना बेरंग कितने।
बादलों के ढंग कितने।।
-- 
आस का अंकुर उगा है,
आओ झूमें और गायें।
आओ बारिश में नहायें,
दूर गर्मी को भगायें।
कष्ट देता था पसीना,
सूखते थे अंग कितने।
बादलों के ढंग कितने।।

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