गजल और गीत क्या है,
नहीं कोई जान पाया है।
हृदय की बात कहने को,
कलम अपना चलाया है।।
मिलन की जब घड़ी होती,
बिछुड़ जाने का गम होता,
तभी पर्वत के सीने से,
निकलता धार बन सोता,
उफनते भाव के नद को,
करीने से सजाया है।
हृदय की बात कहने को,
कलम अपना चलाया है।।
बिछाएँ हों किसी ने जब,
वफा की राह में काँटे,
लगीं हो दोस्ती में जब,
जफाओं की कठिन गाँठे,
दबे जज्बात कहने का,
बहाना हाथ आया है।
हृदय की बात कहने को,
कलम अपना चलाया है।।
चमन में जब कभी,
वीरानगी-दहशत सी छायी हो,
वतन में जब कभी,
गर्दिश कहर बन करके आयी हो,
बहारों को मनाने को,
सुखनवर गीत लाया है।
हृदय की बात कहने को, कलम अपना चलाया है।।
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वाह ! बहुत ही खूबसूरत रचना ! हर शब्द अर्थपूर्ण हर भाव गहन !
ReplyDeleteSunder prastuti.....!!
ReplyDeleteमिलन की जब घड़ी होती,
ReplyDeleteबिछुड़ जाने का गम होता,
तभी पर्वत के सीने से,
निकलता धार बन सोता- बहुत बढि़या उद्गार हैं डॉ0 साहब। कविवर पंत की पंक्तियां याद आ रही हैं-' वियोगी होगा पहला कवि, आह से उपजा होगा गान।' साथ ही अपना शेर भी जोड़ना चाहूँगा- दिल हो ग़म से बोझिल तनहाई में छलके प्याला, तब जाकर होंठों पर एक तराना जगता है।