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Monday, 12 November 2012

"तम मिटाने को, दिवाली आ गयी है" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

!! शुभ-दीपावली !!
 
तम अमावस का मिटाने को,
दिवाली आ गयी है।
दीपकों की रोशनी सबके,
दिलों को भा गयी है।।

जगमगाते खूबसूरत, 
लग रहे नन्हें दिये,
लग रहा जैसे सितारे ही, 
धरा पर आ गये,
झोंपड़ी महलों के जैसी,
मुस्कराहट पा गयी है।
दीपकों की रोशनी सबके,
दिलों को भा गयी है।।

भवन की दीवार को, 
बेनूर बारिश ने करा था,
गाँव के कच्चे घरों का, 
नूर भी इसने हरा था,
रंग-लेपन से सभी में,
अब सजावट छा गयी है।
दीपकों की रोशनी सबके,
दिलों को भा गयी है।।

छँट गया सारा अन्धेरा, 
पास का परिवेश का,
किन्तु अपनों ने किया, 
बदहाल भारत देश का,
प्यार जैसे शब्द को भी तो,
दिखावट खा गयी है।
दीपकों की रोशनी सबके,
दिलों को भा गयी है।।

2 comments:

  1. बहुत सुन्दर रचना....
    आपको सहपरिवार दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएँ....
    :-)

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  2. छँट गया सारा अन्धेरा,
    पास का परिवेश का,
    किन्तु अपनों ने किया,
    बदहाल भारत देश का,
    प्यार जैसे शब्द को भी तो,
    दिखावट खा गयी है।
    दीपकों की रोशनी सबके,
    दिलों को भा गयी है।।

    बहुत सार्थक बिम्ब .बधाई .

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