मीठा राग सुनाती हो।
आनन-फानन में उड़ करके,
आसमान तक जाती हो।।
मेरे अगर पंख होते तो,
मैं भी नभ तक हो आता।
पेड़ों के ऊपर जा करके,
ताजे-मीठे फल खाता।।
जब मन करता मैं उड़ कर के,
नानी जी के घर जाता।
आसमान में कलाबाजियाँ,
कर के सबको दिखलाता।।
सूरज उगने से पहले तुम,
नित्य-प्रति उठ जाती हो।
चीं-चीं, चूँ-चूँ वाले स्वर से ,
मुझको रोज जगाती हो।।
तुम मुझको सन्देशा देती,
रोज सवेरे उठा करो।
पुस्तक-कॉपी को ले करके,
पढ़ने में नित जुटा करो।।
चिड़िया रानी बड़ी सयानी,
कितनी मेहनत करती हो।
दाना-दाना बीन-बीन कर,
पेट हमेशा भरती हो।।
अपने कामों से मेहनत का,
पथ हमको दिखलाती हो।
जीवन श्रम के लिए बना है,
सीख यही सिखलाती हो।।
वाह आदरणीय गुरुदेव श्री वाह बहुत ही मीठी कविता सुन्दर भाव से सुसज्जित लाजवाब हार्दिक बधाई स्वीकारें
ReplyDeleteआपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति मंगलवारीय चर्चा मंच पर ।।
ReplyDeleteबचपन में ले जाते हैं आप गुरु जी ,ऐसी सुंदर रचनाओं के साथ ..
ReplyDeleteशुक्रिया जी
दाना दाना खोय कै सोचे चिरी मुँडेर ।
ReplyDeleteजों पहुंची मैं नीड पै चुन चुन लेंगे घेर ॥
आपकी यह प्रविष्टि कल के चर्चा मंच पर है
ReplyDeleteआभार
अति सुन्दर प्रस्तुति..
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ReplyDeleteसुंदर बाल कविता—एक थी गौरैया
साथ ही एक संदेश—जीव जगत के
संरक्षण के लिये.
bahut sundar geet ..tazgi dene
ReplyDeletewali .....