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Monday, 11 March 2013

‘‘चिड़िया रानी’’ (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)

 मीठा राग सुनाती हो।
आनन-फानन में उड़ करके,
आसमान तक जाती हो।।

मेरे अगर पंख होते तो,
मैं भी नभ तक हो आता।
पेड़ों के ऊपर जा करके,
ताजे-मीठे फल खाता।।

जब मन करता मैं उड़ कर के,
नानी जी के घर जाता।
आसमान में कलाबाजियाँ, 
कर के सबको दिखलाता।।

सूरज उगने से पहले तुम,
नित्य-प्रति उठ जाती हो।
चीं-चीं, चूँ-चूँ वाले स्वर से ,
मुझको रोज जगाती हो।।

तुम मुझको सन्देशा देती,
रोज सवेरे उठा करो।
पुस्तक-कॉपी को ले करके,
पढ़ने में नित जुटा करो।।

चिड़िया रानी बड़ी सयानी,
कितनी मेहनत करती हो।
दाना-दाना बीन-बीन कर,
पेट हमेशा भरती हो।।

अपने कामों से मेहनत का,
पथ हमको दिखलाती हो।
जीवन श्रम के लिए बना है,
सीख यही सिखलाती हो।।

8 comments:

  1. वाह आदरणीय गुरुदेव श्री वाह बहुत ही मीठी कविता सुन्दर भाव से सुसज्जित लाजवाब हार्दिक बधाई स्वीकारें

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  2. आपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति मंगलवारीय चर्चा मंच पर ।।

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  3. बचपन में ले जाते हैं आप गुरु जी ,ऐसी सुंदर रचनाओं के साथ ..
    शुक्रिया जी

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  4. दाना दाना खोय कै सोचे चिरी मुँडेर ।
    जों पहुंची मैं नीड पै चुन चुन लेंगे घेर ॥

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  5. आपकी यह प्रविष्टि कल के चर्चा मंच पर है
    आभार

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  6. अति सुन्दर प्रस्तुति..

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  7. सुंदर बाल कविता—एक थी गौरैया
    साथ ही एक संदेश—जीव जगत के
    संरक्षण के लिये.

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  8. bahut sundar geet ..tazgi dene
    wali .....

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