हो गया मौसम गरम,
सूरज अनल बरसा रहा।
गुलमोहर के पादपों का,
“रूप” सबको भा रहा।।
दर्द-औ-ग़म अपना छुपा,
हँसते रहो हर हाल में,
धैर्य मत खोना कभी,
विपरीत काल-कराल में,
चहकता कोमल सुमन,
सन्देश देता जा रहा।
गुलमोहर के पादपों का,
“रूप” सबको भा रहा।।
घूमता है चक्र, दुख के बाद,
सुख भी आयेगा,
कुछ दिनों के बाद बादल,
नेह भी बरसायेगा,
ग्रीष्म ही तरबूज, ककड़ी
और खीरे ला रहा।
गुलमोहर के पादपों का,
“रूप” सबको भा रहा।।
सर्दियों के बाद तरु,
पत्ते पुराने छोड़ता,
गर्मियों के वास्ते,
नवपल्लवों को ओढ़ता,
पथिक को छाया मिले,
छप्पर अनोखा छा रहा।
गुलमोहर के पादपों का,
“रूप” सबको भा रहा।।
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Sunday, 26 May 2013
" गुलमोहर का, “रूप” सबको भा रहा" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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सकारात्मक सन्देश गुल मोहर के माध्यम से
ReplyDeleteसुन्दर कविता ....!!
ReplyDeleteसुन्दर भावनात्मक अभिव्यक्ति .आभार . तेरे हर सितम से मुझको नए हौसले मिले हैं .''
ReplyDeleteसाथ ही जानिए संपत्ति के अधिकार का इतिहास संपत्ति का अधिकार -3महिलाओं के लिए अनोखी शुरुआत आज ही जुड़ेंWOMAN ABOUT MAN
sahi bat gulmohar par kitna bhi likhiye kam hai ...
ReplyDeletesundar rachana prastuti ...abhaar
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