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Wednesday, 23 April 2014

"इन्साफ की डगर पर" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')


इन्साफ की डगर परनेता नही चलेंगे।
होगा जहाँ मुनाफाउस ओर जा मिलेंगे।।
दिल में घुसा हुआ है,
दल-दल दलों का जमघट।
संसद में फिल्म जैसा,
होता है खूब झंझट।
फिर रात-रात भर मेंआपस में गुल खिलेंगे।
होगा जहाँ मुनाफा उस ओर जा मिलेंगे।।
गुस्सा व प्यार इनका,
केवल दिखावटी है।
और देश-प्रेम इनका,
बिल्कुल बनावटी है।
बदमाशमाफिया सब इनके ही घर पलेंगे।
होगा जहाँ मुनाफाउस ओर जा मिलेंगे।।
खादी की केंचुली में,
रिश्वत भरा हुआ मन।
देंगे वहीं मदद ये,
होगा जहाँ कमीशन।
दिन-रात कोठियों मेंघी के दिये जलेंगे।
होगा जहाँ मुनाफाउस ओर जा मिलेंगे।।

2 comments:

  1. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 24-04-2014 को चर्चा मंच पर दिया गया है
    आभार

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