इन्साफ की डगर पर, नेता नही चलेंगे।
होगा जहाँ मुनाफा, उस ओर जा मिलेंगे।।
दिल में घुसा हुआ है,
दल-दल दलों का जमघट।
संसद में फिल्म जैसा,
होता है खूब झंझट।
फिर रात-रात भर में, आपस में गुल खिलेंगे।
होगा जहाँ मुनाफा उस ओर जा मिलेंगे।।
गुस्सा व प्यार इनका,
केवल दिखावटी है।
और देश-प्रेम इनका,
बिल्कुल बनावटी है।
बदमाश, माफिया सब इनके ही घर पलेंगे।
होगा जहाँ मुनाफा, उस ओर जा मिलेंगे।।
खादी की केंचुली में,
रिश्वत भरा हुआ मन।
देंगे वहीं मदद ये,
होगा जहाँ कमीशन।
दिन-रात कोठियों में, घी के दिये जलेंगे।
होगा जहाँ मुनाफा, उस ओर जा मिलेंगे।।
|
समर्थक
Wednesday, 23 April 2014
"इन्साफ की डगर पर" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 24-04-2014 को चर्चा मंच पर दिया गया है
ReplyDeleteआभार
बहुत बढ़िया :)
ReplyDelete