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Tuesday, 1 July 2014

“बरसता सावन सुहाना हो गया” (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

savan ke jhoole
गन्दुमी सी पर्त ने ढक ही दिया आकाश नीला 
देखकर घनश्याम को होने लगा आकाश पीला 

छिप गया चन्दा गगन में, हो गया मज़बूर सूरज
 

पर्वतों की गोद में से बह गया कमजोर टीला 

बाँटती सुख सभी को बरसात की भीनी फुहारें
 

बरसता सावन सुहाना हो गया चौमास गीला 

 पड़ गये झूले पुराने नीम के उस पेड़ पर
पास के तालाब से मेढक सुनाते सुर-सुरीला 

इन्द्र ने अपने धनुष का 
“रूप” सुन्दर सा दिखाया 

सात रंगों से सजा है गगन में कितना सजीला

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