जो हैं
कोमल-सरल उनको मेरा नमन।
जो घमण्डी हैं उनका ही होता पतन।। पेड़ अभिमान में थे अकड़ कर खड़े, एक झोंके में वो धम्म से गिर पड़े, लोच वालो का होता नही है दमन। जो घमण्डी हैं उनका ही होता पतन।। सख्त चट्टान पल में दरकने लगी, जल की धारा के संग में लुढ़कने लगी, छोड़ देना पड़ा कंकड़ों को वतन। जो घमण्डी हैं उनका ही होता पतन।। घास कोमल है लहरा रही शान से, सबको देती सलामी बड़े मान से, आँधी तूफान में भी सलामत है तन। जो घमण्डी हैं उनका ही होता पतन।। |
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Wednesday, 29 October 2014
"जो घमण्डी हैं उनका ही होता पतन’’ (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
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आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 30/10/2014 को चर्चा मंच पर चर्चा -1782 में दिया गया है
ReplyDeleteआभार
बहुत सुंदर !
ReplyDeleteवाह...क्या बात है...बहुत सुंदर रचना।
ReplyDeleteAapki rachnaayein prerna deti hai.... Saty se sarobaar hoti hain... Lajawaab ek baar fir se.... Aabhaar !!
ReplyDeleteसही कहा।
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