मधुर पर्यावरण जिसने, बनाया और निखारा है,
हमारा आवरण
जिसने, सजाया और सँवारा है।
बहुत आभार है
उसका, बहुत उपकार है उसका,
दिया माटी के
पुतले को, उसी ने प्राण प्यारा है।।
बहाई ज्ञान की
गंगा, मधुरता ईख में कर दी,
कभी गर्मी, कभी वर्षा, कभी कम्पन भरी सरदी।
किया है रात को
रोशन, दिये हैं चाँद और तारे,
अमावस को
मिटाने को, दियों में रोशनी भर दी।।
मधुर पर्यावरण जिसने, बनाया और निखारा है,
हमारा आवरण जिसने, सजाया और सँवारा है।।
लगा जब रोग का सदमा, तो उसने ही दवा दी है,
कुहासे को
मिटाने को, उसी ने तो हवा दी है।
जो रहते जंगलों
में, भीगते बारिश के पानी में,
उन्ही के
वास्ते झाड़ी मे कुटिया सी छवा दी है।।
मधुर पर्यावरण जिसने, बनाया और निखारा है,
हमारा आवरण जिसने, सजाया और सँवारा है।।
सुबह और शाम को
मच्छर, सदा गुणगान करते हैं,
जगत के उस
नियन्ता को, सदा प्रणाम करते हैं।
मगर इन्सान है
खुदगर्ज कितना आज के युग में ,
विपत्ति जब
सताती है, नमन शैतान करते है।।
मधुर पर्यावरण जिसने, बनाया और निखारा है,
हमारा आवरण जिसने, सजाया और सँवारा है।।
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Saturday, 29 November 2014
"नमन शैतान करते है" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
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बहुत सुन्दर और सार्थक प्रस्तुति...
ReplyDelete...प्रकृति सिर्फ देना ही जानती है.. हम इंसान उससे यह समय रहते यह सबक नहीं ले पाते हैं ...
ReplyDeleteपर्यावरण सन्देश देती सुन्दर रचना
वाह ! सृष्टि नियंता के दिए उपहारों का बखूबी गुणगान किया है ! परम पिता परमेश्वर का हमें इन सौगातों के लिये अवश्य ही आभार मानना चाहिए ! बहुत सुन्दर रचना !
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