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Thursday, 5 March 2015

“बरफी-लड्डू के चित्र देखकर, अपने मन को बहलाते हैं” (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

1806mawa248 
मधुमेह हुआ जबसे हमको, 
मिष्ठान नही हम खाते हैं।
बरफी-लड्डू के चित्र देखकर,
अपने मन को बहलाते हैं।। 

Dal_Bhat_Tarkari,Nepal
आलू, चावल और रसगुल्ले,
खाने को मन ललचाता है,
हम जीभ फिराकर होठों पर,
आँखों को स्वाद चखाते हैं।
मधुमेह हुआ जबसे हमको,
मिष्ठान नही हम खाते हैं।।

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गुड़ की डेली मुख में रखकर,
हम रोज रात को सोते थे,
बीते जीवन के वो लम्हें,
बचपन की याद दिलाते हैं।
मधुमेह हुआ जबसे हमको,
मिष्ठान नही हम खाते हैं।

हर सामग्री का जीवन में,
कोटा निर्धारित होता है,
उपभोग किया ज्यादा खाकर,
अब जीवन भर पछताते हैं।
मधुमेह हुआ जबसे हमको,
मिष्ठान नही हम खाते हैं।

थोड़ा-थोड़ा खाते रहते तो,
जीवन भर खा सकते थे,
पेड़ा और बालूशाही को,
हम देख-देख ललचाते हैं।
मधुमेह हुआ जबसे हमको,
मिष्ठान नही हम खाते हैं।

हमने खाया मन-तन भरके,
अब शिक्षा जग को देते हैं,
खाना मीठा पर कम खाना,
हम दुनिया को समझाते हैं।
मधुमेह हुआ जबसे हमको,
मिष्ठान नही हम खाते हैं।
 

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