निद्रा-तन्द्रा दूर भगाओ।। -- आज आदमी है बेचारा, बौराया है ये जग सारा, दूषित है परिवेश हमारा, हे शिव! आकर आज वतन में, डमरू का तुम नाद सुनाओ। निद्रा-तन्द्रा दूर भगाओ।। -- छाया है घनघोर अँधेरा, नकली भगवानों ने घेरा, गड़े हुए हैं तम्बू-डेरा, सच्चाई को करो उजागर, ढोंग और पाखण्ड हटाओ। निद्रा-तन्द्रा दूर भगाओ।। -- जीवन आशामुखी नहीं है, अपने दुख से दुखी नहीं है, इसीलिए जग सुखी नहीं है, सम्बन्धों में नहीं मधुरता, शंकर! मन का मैल मिटाओ। निद्रा-तन्द्रा दूर भगाओ।। -- लुप्त हो गयी है खुद्दारी, जन-गण-मन में है मक्कारी, जगह-जगह पसरी गद्दारी, देशभक्ति को जीवित कर दो, खुदगर्ज़ी पर रोक लगाओ। निद्रा-तन्द्रा दूर भगाओ।। -- आज आपका अभिनन्दन है, बेलपत्र-अक्षत-चन्दन है, महादेव का ही वन्दन है, अब सोया परिवेश जगाओ। निद्रा-तन्द्रा दूर भगाओ।। -- |
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Tuesday, 1 March 2022
गीत "शंकर! मन का मैल मिटाओ" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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शिवरात्र की मंगलकामनाएं।
ReplyDeleteसादर प्रणाम
ReplyDeleteआपका अभिनन्दन है
बेलपत्र-अक्षत-चन्दन है,
महादेव का ही वन्दन है,
–सुन्दर रचना
सही है, शिव के डमरू का नाद हो तो अज्ञान की नींद से जागरण होगा, सुंदर रचना!
ReplyDeleteआज आपका अभिनन्दन है,
ReplyDeleteबेलपत्र-अक्षत-चन्दन है,
महादेव का ही वन्दन है,
बहुत बढ़िया....सुंदर शब्दों का चयन