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Tuesday, 1 March 2022

गीत "शंकर! मन का मैल मिटाओ" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

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भोले-शंकर आओ-आओ।
निद्रा-तन्द्रा दूर भगाओ।।
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आज आदमी है बेचारा,
बौराया है ये जग सारा,
दूषित है परिवेश हमारा,
हे शिव! आकर आज वतन में,
डमरू का तुम नाद सुनाओ।
निद्रा-तन्द्रा दूर भगाओ।।
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छाया है घनघोर अँधेरा,
नकली भगवानों ने घेरा,
गड़े हुए हैं तम्बू-डेरा,
सच्चाई को करो उजागर,
ढोंग और पाखण्ड हटाओ।
निद्रा-तन्द्रा दूर भगाओ।।
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जीवन आशामुखी नहीं है,
अपने दुख से दुखी नहीं है,
इसीलिए जग सुखी नहीं है,
सम्बन्धों में नहीं मधुरता,
शंकर! मन का मैल मिटाओ।
निद्रा-तन्द्रा दूर भगाओ।।
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लुप्त हो गयी है खुद्दारी,
जन-गण-मन में है मक्कारी,
जगह-जगह पसरी गद्दारी,
देशभक्ति को जीवित कर दो,
खुदगर्ज़ी पर रोक लगाओ।
निद्रा-तन्द्रा दूर भगाओ।।
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आज आपका अभिनन्दन है,
बेलपत्र-अक्षत-चन्दन है,
महादेव का ही वन्दन है,
अब सोया परिवेश जगाओ।
निद्रा-तन्द्रा दूर भगाओ।।
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4 comments:

  1. शिवरात्र की मंगलकामनाएं।

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  2. सादर प्रणाम
    आपका अभिनन्दन है

    बेलपत्र-अक्षत-चन्दन है,
    महादेव का ही वन्दन है,

    –सुन्दर रचना

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  3. सही है, शिव के डमरू का नाद हो तो अज्ञान की नींद से जागरण होगा, सुंदर रचना!

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  4. आज आपका अभिनन्दन है,
    बेलपत्र-अक्षत-चन्दन है,
    महादेव का ही वन्दन है,
    बहुत बढ़िया....सुंदर शब्दों का चयन

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