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Monday, 10 September 2012
"काला-कौआ होता मेहतर" बालकविता-डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
कौआ बहुत सयाना होता।
कर्कश इसका गाना होता।।
पेड़ों की डाली पर रहता।
सर्दी
,
गर्मी
,
वर्षा सहता।।
कीड़े और मकोड़े खाता।
सूखी रोटी भी खा जाता।।
सड़े मांस पर यह ललचाता।
काँव-काँव स्वर में चिल्लाता।।
साफ सफाई करता बेहतर।
काला-कौआ होता मेहतर।।
3 comments:
रविकर
10 September 2012 at 18:34
nice
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http://bal-kishor.blogspot.com/
6 October 2012 at 19:23
achchi bal kavita hai .
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महेन्द्र श्रीवास्तव
13 October 2012 at 20:57
अच्छी रचना
बहुत बढिया
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nice
ReplyDeleteachchi bal kavita hai .
ReplyDeleteअच्छी रचना
ReplyDeleteबहुत बढिया