आज देश में उथल-पुथल क्यों, क्यों हैं भारतवासी आरत? कहाँ खो गया रामराज्य, और गाँधी के सपनों का भारत? आओ मिलकर आज विचारें, कैसी यह मजबूरी है? शान्ति वाटिका के सुमनों के, उर में कैसी दूरी है? क्यों भारत में बन्धु-बन्धु के, लहू का आज बना प्यासा? कहाँ खो गयी कर्णधार की, मधु रस में भीगी भाषा? कहाँ गयी सोने की चिड़िया, भरने दूषित-दूर उड़ाने? कौन ले गया छीन हमारे, अधरों की मीठी मुस्काने? किसने हरण किया गान्धी का, कहाँ गयी इन्दिरा प्यारी? प्रजातन्त्र की नगरी की, क्यों आज दुखी जनता सारी? कौन राष्ट्र का हनन कर रहा, माता के अंग काट रहा? भारत माँ के मधुर रक्त को, कौन राक्षस चाट रहा? |
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Sunday, 5 August 2012
"मधुर रक्त को, कौन राक्षस चाट रहा?" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' का एक गीत)
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रक्त,
राक्षस चाट रहा
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करे करिश्मा कपटमय, काबिल कृपण कृपाण ।
ReplyDeleteशिरोधार्य आदेश सब, जाहिल काहिल राड़ |
जाहिल काहिल राड़, नहीं सुख देखा जाता |
कर समाज दो फाड़, शान्ति-सौहार्द मिटाता |
दु:शासन का काम, घसीटे द्रुपद-सुता को |
ताम-झाम अपमान, हवा भर जीवन फांको ||
बहुत अच्छी कविता विचारणीय प्रश्नों के उत्तर खोजते हुए
ReplyDeleteराष्ट्र भावना से पल्लवित गीत जिसे आज लालू ब्रांड सेकुलर पलीता लगा रहें हैं .संभल के रहना अपने घर में छिपे हुए लालुओं से ...
ReplyDeleteram ram bhai
मंगलवार, 7 अगस्त 2012
भौतिक और भावजगत(मनो -शरीर ) की सेहत भी जुडी है आपकी रीढ़ से
प्रभावशाली सृजन ,समीचीन कथ्य व भाव ....आभार जी ..
ReplyDeleteविचारणीय प्रश्न !
ReplyDeleteबहुत सुंदर भाव !
ReplyDeleteहम खुद ही अब राक्षस हो गये हैं
पडो़सी के घर में राक्षस ढूँड रहे हैं !!
पंख कटे,'सोने की चिड़िया के ,देखो यह घायल है |
ReplyDeleteनाच रही वह 'नाच' व्यवस्था,टूट गयी बस पायल है ||
कहाँ है ख़ामी, ढूँढ न पाए,सारे खोजी ढूँढ थके -
इस परिवर्तन का हर भारत वासी,भैया कायल है ||