नीलगगन पर कुहरा छाया,
दोपहरी में शाम हो गई।
शीतलता के कारण सारी,
दुनियादारी जाम हो गई।।
गैस जलानेवाली ग़ायब,
लकड़ी गायब बाज़ारों से,
कैसे जलें अलाव? यही तो
पूछ रहे हैं सरकारों से,
जीवन को ढोनेवाली अब,
काया भी नाकाम हो गई।
खुदरा व्यापारी जायेंगे,
परदेशी व्यापार करेंगे,
आम आदमी को लूटेंगे,
अपनी झोली खूब भरेंगे,
दलदल में फँस गया सफीना,
धारा तो गुमनाम हो गई।
जीवन को ढोनेवाली अब,
काया भी नाकाम हो गई।
सस्ती हुई ज़िन्दग़ी कितनी,
बढ़ी मौत पर मँहगाई है,
संसद में बैठे बिल्लों ने,
दूध-मलाई ही खाई है,
शीला की लुट गई जवानी,
मुन्नी भी बदनाम हो गई।
|
समर्थक
Wednesday, 11 December 2013
"दुनियादारी जाम हो गई" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
बहुत सुन्दर......सटीक पंक्तियाँ .....
ReplyDeleteबहुत सुन्दर पंक्तियाँ
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति वाह
ReplyDelete