गया शिशिर का समय और ठिठुरन का हुआ सफाया।।
गंगा जी के तट पर, अपनी खिचड़ी खूब पकाओ,
खिचड़ी खाने से पहले, निर्मल जल से तुम नहाओ,
आसमान में खुली धूप को सूरज लेकर आया।
गया शिशिर का समय और ठिठुरन का हुआ सफाया।।
स्वागत करो बसन्त ऋतु का, जीवन में रस घोलो,
तिल-चौलाई के लड्डू को खाकर मीठा बोलो,
इस अवसर पर सबके मन में है उल्लास समाया।
गया शिशिर का समय और ठिठुरन का हुआ सफाया।।
खुशियों की डोरी से नभ में अपनी पतंग उड़ाओ,
मन में भरकर जोश जीत का जमकर पेंच लड़ाओ,
झुण्ड पंछियों का नभ में, यह खेल देखने आया।
गया शिशिर का समय और ठिठुरन का हुआ सफाया।।
कुछ दिन में ध्वज फहरायेंगे, भारतभाग्यविधाता,
प्यारा सा गणतन्त्रदिवस भी इसी माह में आता,
पर्व सलोना त्यौहारों की गठरी को संग लाया।
गया शिशिर का समय और ठिठुरन का हुआ सफाया।।
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Tuesday, 14 January 2014
"मकर लग्न में सूरज" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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सुन्दर प्रस्तुति-
ReplyDeleteआभार आदरणीय-
बहुत सुन्दर !
ReplyDeleteमकर संक्रान्ति की शुभकामनाएं !
नई पोस्ट हम तुम.....,पानी का बूंद !
नई पोस्ट बोलती तस्वीरें !