चार दिनों का ही मेला है, सारी दुनियादारी।
लेकिन नहीं जानता कोई, कब आयेगी बारी।।
अमर समझता है अपने को, दुनिया का हर प्राणी,
छल-फरेब के बोल, बोलती रहती सबकी वाणी,
बिना मुहूरत निकल जायेगी इक दिन प्राणसवारी।
लेकिन नहीं जानता कोई, कब आयेगी बारी।।
ठाठ-बाट और महल-दुमहले, साथ न तेरे जायेंगे,
केवल मरघट तक ही सारे, रस्म निभाने आयेंगे,
जिन्दा लोगों से सब रखते, अपनी नातेदारी।
लेकिन नहीं जानता कोई, कब आयेगी बारी।।
काम-क्रोध, मद-लोभ सभीकुछ, जीते-जी की माया,
धू-धू करके जल जायेगी, इक दिन तेरी काया,
आने के ही साथ बँधी है, जाने की तैयारी।
लेकिन नहीं जानता कोई, कब आयेगी बारी।।
याद करे तुझको दुनिया, तू ऐसा पुण्य कमाता जा,
मरने से पहले ऐ प्राणी, सच्चा पथ अपनाता जा,
जीवन का अवसान हो रहा, सिमट रही है पारी।
लेकिन नहीं जानता कोई, कब आयेगी बारी।।
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Sunday, 8 June 2014
"भजन-सिमट रही है पारी" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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ReplyDeleteयाद करे तुझको दुनिया, तू ऐसा पुण्य कमाता जा,
मरने से पहले ऐ प्राणी, सच्चा पथ अपनाता जा,
जीवन का अवसान हो रहा, सिमट रही है पारी।
लेकिन नहीं जानता कोई, कब आयेगी बारी।।
"
बहुत ही प्रेरक एवं सत्य को दर्शाती हुई।
"
ReplyDeleteयाद करे तुझको दुनिया, तू ऐसा पुण्य कमाता जा,
मरने से पहले ऐ प्राणी, सच्चा पथ अपनाता जा,
जीवन का अवसान हो रहा, सिमट रही है पारी।
लेकिन नहीं जानता कोई, कब आयेगी बारी।।
"
बहुत ही प्रेरक एवं सत्य को दर्शाती हुई।
"
ReplyDeleteयाद करे तुझको दुनिया, तू ऐसा पुण्य कमाता जा,
मरने से पहले ऐ प्राणी, सच्चा पथ अपनाता जा,
जीवन का अवसान हो रहा, सिमट रही है पारी।
लेकिन नहीं जानता कोई, कब आयेगी बारी।।
"
बहुत ही प्रेरक एवं सत्य को दर्शाती हुई।
"
ReplyDeleteयाद करे तुझको दुनिया, तू ऐसा पुण्य कमाता जा,
मरने से पहले ऐ प्राणी, सच्चा पथ अपनाता जा,
जीवन का अवसान हो रहा, सिमट रही है पारी।
लेकिन नहीं जानता कोई, कब आयेगी बारी।।
"
बहुत ही प्रेरक एवं सत्य को दर्शाती हुई।